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Tuesday, December 20, 2016

आभामंडल विज्ञान

                                                                                         आभामंडल विज्ञान
दोस्तों प्रणाम आज इस विषय पर अपने विचार सबसे साँझा करना चाहूँगा , आभामंडल हमारे व्यक्तित्व की परछाई होती हे । किसी का आभा मंडल बहुत सकरात्मक हो सकता हे किसी नकरात्मक । हमारे मन में विचारो की जंग चलती रहती हे ,स्तिथि के अनुसार वेसे भाव हमारे चेहरे पर हमारी बॉडी लैंग्वेज पर साफ़ देखे जा सकते हे जिससे हमारे आभामंडल का निर्माण होता हे । तो एक बात समज में आती हे की अगर हम अपने भीतर की स्तिथि के साथ ora भी बनता बिगड़ता हे ।
मुझे अपने जीवन मे कुछ बुद्द पूरषो से मिलने का सोभाग्य मिला है ,आज मे आपको कुछ लक्ष बन ताना चाहूगा जिससे आप उन्हे पहचान सके । मानो दस लोग बैठे है तो ज्ञानी का स्थान अहम के तल पर रिक्त हो गा ,उसके होने का कोइ भार नही होगा पर शारिरक तोर पर वो मोजुद होगा । यही उसके प्रति आकषॅन का कारन है ,वह कुदरत के साथ एक है तो उसका ओरा भी सारे ब्रहमाडं कै रूप ले लेका है । उसके भीतर वायु अग्नि पृथ्वी ओर आकाश सतुलनंमे आ गए है । जब वो मिल ही गयाकुदरत से तो ब्रहमाडं हो ही जाएगा । उसमे धरती सी सहनशीलता ,अग्नि सा तेज ,जल की शीतलता ,वायु की सवेदंनशीलता तथा आकाश की विशालता है प्रगाड़ है ।आप कल्पना करे कोइ एसा वयक्तित्व के स्वामी जब आप सपॅक मे आते है तो आपके भीतर की उजॉ ओर भाव भी हिलोरे लेने लगते है । जैसे एक बड़े चुम्बक के पास अगर कुछ छोटे चुबकं जाए तो उनकी क्या स्थिति होगी वो इतने आकषॅन मे आ जाए की उससे चिपक जाएगे । एसे ही साधक जब किसी महात्मा से मिलता है तोवो भी उसके चरनो मे झुक जाता है उसकी नजर की गहराइ को देखने की कोशिश करता है । लेकिन चुबकं चाहे जितना ही बड़ा क्यु न हो वो लकड़ व अन्य धातुओ को आकषॅति नही कर सकता ,कहने का भाव है साधक को ही सिद्द आकषिॅत कर सकता है जिसमे साधक के गुन है ।
अब मै आपको एक प्रयोग बताता हू जिससे आप अपने आभा मडंल का आकंलन कर सकते है व उसे बड़ा सकते है ,एक दीया या मोमबती जलाकर उसके सामने आखं बदं कर बैठे ,उसकी दूरी उतनी ो शुरूआत मे कि जिससे आपको उसकी आचं सपष्ट महसूस हो ,फिर धीरे धीरे दूरी बड़ाते जाए दस दस मिनट के अतंराल मे ,एक बात ध्यान रखे की आपको उसकी आचं निरतंर महसूस होती रहे दूरी उतनी ही हो , जितनी दूर तक आप आचं महसूस करते है उतना आपका आभा मडलं है ,वो उतनी दूर तक प्रभावित करता है । यह इसी प्रयोग से बड़ाया भी जा सकता है । आप यह प्रयोग निरतंर करे व अपने आभामडंल का प्रभाव दुसरो पर सपष्ट देखेगे । हा जब यह प्रयोग करे तो अधेरा हो तो बहतर है ।
आभामडंल जिस तरह का होगा उसी तरह की शक्तियो से सपॅक करने सक्षमता आ सकती है । आपने सुना होगा गनेश के उपासक को गनेश ,शिव के उपासक को शिव या किसी महात्मा के उपदेश मानने वाले को उस महात्मा का अतंर मे दशॅन होता है यह उस उपदेश को मानने से आभामडलं मे आए बदलाव के कारन भी सभवं होता है । अतंर मे मनोस्थिति के अनुसारा आपकी तरगें रूपातरिंत होती है ,व दूसरो को भी वो प्रभावित करती है । जो बहूत नकरात्मक हो जाते है वो बुरी शक्तियोे के प्रभाव मे भी आ जाते है यह आम देखा जा सकता है इस सबका कारन आभामडंल विज्ञान है ,किसी साधक ने इस विषय पर कहने को प्रेरित किया था उसका व आप सबका धन्यावाद ।
शैलेश सुरती-अहमदाबाद 

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